निर्जला एकादशी

ऊँ नमः शिवाय।

राधे राधे दोस्तो मैं आचार्य दयानन्द आप सभी लोगो का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत करता हूं.ईश्वर से कामना करता हूं आप सब लोग खुश होंगे सुखी होंगे संपन्न होंगे…

निर्जला एकादशी का महत्व:-

हिंदू पंचांग के अनुसार तीसरे महीने ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। माना जाता है कि निर्जला एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को सभी एकादशी व्रतों का पुण्य प्राप्त होता है।इस पावन दिन व्रत रखने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। 

निर्जला एकादशी का समय:-

ज्येष्ठ मास की एकादशी तिथि की शुरुआत 10 जून 2022 को सुबह 7:25 मिनट से होकर इसका समापन 11 जून 2022 को सुबह 5:45 मिनट पर होगा।व्रत का पारण 11 जून 2022 शनिवार को सुबह 5:49 मिनट से 8:29 मिनट के मध्य किया जाएगा।

निर्जला एकादशी के लिए पूजन सामग्री:-

भगवान् श्री हरी विष्णु जी की मूर्ति या प्रतिमा, फल, पुष्प, गंगाजल, धूप, अगरबत्ती,मिष्ठान,तुलसी पत्र, इत्यादि.

निर्जला एकादशी के लिए पूजन विधि:-

सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।भगवान की आरती करें।भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं। इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।

निर्जला एकादशी के लिए व्रत कथा:-

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ: धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया। तब युधिष्ठिर ने कहा, जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी पड़ती है, उसके बारे में बताएं। भगवान श्री कृष्ण बोले, हे राजन इसके बारे में तो परम धर्मात्मा सत्यवती नन्दन व्यासजी ही बताएं। तब वेदव्यासजी ने कहा कि, दोनों पक्षों (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) की एकादशी में अन्न खाना वर्जित है। द्वादशी के दिन स्नान आदि के बाद पहले ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अन्त में स्वयं भोजन करना चाहिए।

वेदव्यासजी की बात सुनकर भीमसेन बोले, राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव भी एकादशी के दिन कभी भोजन नहीं करते और मुझसे भी भोजन न करने को कहते हैं। लेकिन मुझसे भूख सहन नहीं होती। भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी बोले, यदि तुम नरक को दूषित समझते हो और तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट लगती है तो दोनों पक्षों की एकादशी के दिन भोजन नहीं करना चाहिए।

निर्जला एकादशी के लिए मंत्र:-

1.ॐ नमो नारायण।

2.श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।

3.ॐ हूं विष्णवे नम:।

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इसी जानकारी के साथ में आचार्य दयानन्द आज के अपने इस विषय को अभी विराम देता हूं.तथा कामना करता हूं .की आप सब लोगो को मेरी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। जय श्री कृष्णा दोस्तो…

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