मकर सक्रांति

मकर सक्रांति

ऊँ नमः शिवाय।
राधे राधे दोस्तो मैं आचार्य दयानन्द आप सभी लोगो का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत करता हूं.ईश्वर से कामना करता हूं आप सब लोग खुश होंगे सुखी होंगे संपन्न होंगे…..

दोस्तों आज मैं आपको अपने इस ब्लॉग में मकर सक्रांति के विषय में बताने जा रहा हूं..

मकर सक्रांति का महत्व:-

हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार मकर सक्रांति का दिन बहुत ही शुभ और खास माना जाता है मकर संक्रांति के दिन शुभ मुहूर्त में नदियों और तालाबों का पानी अमृत में बदल जाता है। इस दिन अगर दान किया जाए, तो उसका कई गुना फल मिलता है। इस दिन को देवताओं का दिन भी कहा जाता है। संक्रांति के दिन स्नान व दान करने से जीवन के तमाम पाप दूर हो जाते हैं।तथा जीवन में उन्नति तथा सुख में जीवन की प्राप्ति होती है.

मकर सक्रांति का समय:-

मकर सक्रांति के दिन रोहिणी नक्षत्र में दान इत्यादि तथा पूजा पाठ सर्वोत्तम माना जाता है तथा रोहणी नक्षत्र 14 जनवरी को शाम 08 बजकर 18 मिनट तक रहेगा।मकर संक्रांति पर रोहिणी नक्षत्र के साथ ब्रह्रायोग और आनंदादि शुभ योग का निर्माण होगा.

मकर सक्रांति के लिए पूजा विधि:-

इस वर्ष रोहिणी नक्षत्र में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा।ब्रह्म बेला में उठकर सूर्यदेव को नमस्कार कर दिन की शुरुआत करें। अब नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान कर तिलांजलि करें। आसपास नदी या सरोवर है, तो तिल प्रवाहित करें। इसके बाद विधि पूर्वक पूजा पाठ कर ब्राह्मणों और गरीबों को दान दें।तथा उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है.

मकर सक्रांति के लिए कथाएं:-

पुरानों में जो कथा वर्णित है उसके अनुसार मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य देव अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते हैं। चूंकि शनि मकर राशी के देवता हैं इसी कारन इसे मकर संक्रांति कहा जाता हैं। इसके अलावा संक्रांति की कथा के विषय में महाभारत में भी वर्णन मिलता है। महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के महान योद्धा और कौरवों की सेना के सेनापति गंगापुत्र भीष्म पितामह को इच्छा मुत्यु का वरदान प्राप्त था। अर्जुन के बाण लगाने के बाद उन्होंने इस दिन की महत्ता को जानते हुए अपनी मृत्यु के लिए इस दिन को निर्धारित किया था। भीष्म जानते थे कि सूर्य दक्षिणायन होने पर व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त नहीं होता और उसे इस मृत्युलोक में पुनः जन्म लेना पड़ता हैं। महाभारत युद्ध के बाद जब सूर्य उत्तरायण हुआ तभी भीष्म पितामह ने प्राण त्याग दिए।

सक्रांति के लिए मंत्र तथा उपाय:-

1- सूर्य गायत्री मन्त्र- ॐ भाष्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्य: प्रचोदयात् ।।

2- गायत्री महामन्त्र- ॐ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् ।।

3- महामृत्युंजय मन्त्र- ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

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इसी जानकारी के साथ में आचार्य दयानन्द आज के अपने इस विषय को अभी विराम देता हूं.तथा कामना करता हूं .की आप सब लोगो को मेरी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। जय श्री कृष्णा…..

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