रक्षाबंधन

ऊँ नमः शिवाय।
राधे राधे दोस्तो मैं आचार्य दयानन्द आप सभी लोगो का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत करता हूं.तथा ईश्वर से कामना करता हूं की आप सब लोग खुश होंगे सुखी होंगे संपन्न होंगे…..

दोस्तों आज मैं आपको रक्षाबंधन के विषय में बताने जा रहा हूं.

इस दिन सभी बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती थी जो आज के समय में रक्षाबंधन भी कहलाया जाता है इससे भाई के ऊपर आने वाली सभी प्रकार की विपत्तियां टल जाती है तथा भाई बहन की रक्षा का प्रण लेता है.

राखी बांधने का शुभ समय:-

श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 11 अगस्त 2022, गुरुवार के दिन पूर्वाह्न 10:38 मिनट से शुरू होकर उसके अगले दिन 12 अगस्त 2022, शुक्रवार को सुबह 7:05 मिनट पर समाप्त होगी.

इस दिन सुबह 11:37 मिनट से 12:29 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा. इसके बाद दोपहर 02:14 मिनट से 03:07 मिनट तक विजय मुहूर्त होगा. रक्षाबंधन के दिन प्रदोष काल का मुहूर्त 11 अगस्त 2022 को रात के 08:52 मिनट से 09:14 मिनट रहेगा.

राखी पर्व की सामग्री:-

पूजा की थाली, रोली, राखी, दही, साबुत चावल, हल्दी, आरती का सामान( कपूर इत्यादि),

राखी पर्व की विधि:-

सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि इत्यादि नित्य कर्म करने के तत्पश्चात आरती की थाली में सभी सामग्री  अर्जित  कर ले जैसे रोली, राखी, दही, साबुत चावल, हल्दी,कपूर, मिष्ठान इत्यादि. फिर बहने अपने भाई की आरती उतारते के बाद उनकी सीधे हाथ की कलाई पर राखी  बांध ले तत्पश्चात उनको मिठाई खिलाएं तथा उनके कुशल मंगल की प्रार्थना करें तत्पश्चात उनसे मिलने वाले  नेक को  अर्जित करें.

रक्षाबंधन की पौराणिक कथाएं:-

राजा बलि और लक्ष्मी मां ने शुरू की भाई-बहन की राखी:-

राजा बली बहुत दानी राजा थे और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त भी थे। एक बार उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। इसी दौरान उनकी परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु वामनावतार लेकर आए और दान में राजा बलि से तीन पग भूमि देने के लिए कहा। लेकिन उन्होंने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया। इस पर राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं। तीसरे पग के लिए उन्होंने भगवान का पग अपने सिर पर रखवा लिया। फिर उन्होंने भगवान से याचना की कि अब तो मेरा सबकुछ चला ही गया है, प्रभु आप मेरी विनती स्वीकारें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। भगवान ने भक्त की बात मान ली और बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए। उधर देवी लक्ष्मी परेशान हो गईं। फिर उन्होंने लीला रची और गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंचीं और राजा बलि को राखी बांधी। बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इस पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं। इस पर बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया। जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीना चर्तुमास के रूप में जाना जाता है जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी तक होता है

द्रौपदी और कृष्ण का रक्षाबंधन:-

राखी से जुड़ी एक सुंदर घटना का उल्लेख महाभारत में मिलता है। सुंदर इसलिए क्योंकि यह घटना दर्शाती है कि भाई-बहन के स्नेह के लिए उनका सगा होना जरूरी नहीं है। कथा है कि जब युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ कर रहे थे उस समय सभा में शिशुपाल भी मौजूद था। शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण का अपमान किया तो श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। लौटते हुए सुदर्शन चक्र से भगवान की छोटी उंगली थोड़ी कट गई और रक्त बहने लगा। यह देख द्रौपदी आगे आईं और उन्होंने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर लपेट दिया। इसी समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वह एक-एक धागे का ऋण चुकाएंगे। इसके बाद जब कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया तो श्रीकृष्ण ने चीर बढ़ाकर द्रौपदी के चीर की लाज रखी। कहते हैं जिस दिन द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की कलाई में साड़ी का पल्लू बांधा था वह श्रावण पूर्णिमा की दिन था।

रक्षाबंधन को बांधते वक्त इस मंत्र का जाप करें:-

येन बद्धो बलि: राजा दानवेंद्रो महाबल।

तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

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इसी जानकारी के साथ में आचार्य दयानन्द आज के अपने इस विषय को अभी विराम देता हूं.तथा कामना करता हूं .की आप सब लोगो को मेरी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। जय श्री कृष्णा दोस्तो…

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