देव उत्थान एकादशी

देव उत्थान एकादशी

ऊँ नमः शिवाय।
राधे राधे दोस्तो मैं आचार्य दयानन्द आप सभी लोगो का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत करता हूं.ईश्वर से कामना करता हूं आप सब लोग खुश होंगे सुखी होंगे संपन्न होंगे…

दोस्तों आज मैं आपको इस ब्लॉग में  देव उत्थान एकादशी के विषय में बताने जा रहा हूं जो कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पड़ रहा है.

देव उत्थान एकादशी का महत्व:-

सनातन धर्म के हिंदू धर्म ग्रंथ के अनुसार इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु जी की पूजा-पाठ अर्चना की जाती है तथा इस दिन भगवान विष्णु का शयन काल समाप्त हो जाता है। विवाह आदि शुभ और मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं।मान्यता है कि ये व्रत पापों से मुक्ति दिलाने वाला और सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला व्रत है।

देवोत्थान एकादशी का समय:-

देवोत्थान एकादशी नवंबर के महीने में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि 14 नवंबर 2021 के प्रातः 5:48 पर प्रारंभ होगा तथा 14 नवंबर 2021 के प्रातः 6:39 पर समाप्त हो जाएगी परंतु उदया तिथि के अनुसार यह एकादशी 14 नवंबर 2021 को ही मनाई जाएगी.

देवोत्थान एकादशी के लिए पूजन सामग्री:-

भगवान श्री हरि विष्णु जी का चित्र या प्रतिमा, मूर्ति, पुष्प, नारियल, सुपारी,फल,लौंग,धूप,दीप,घी,पंचामृत,अक्षत,तुलसी,फल,दल,चंदन,मिष्ठान इत्यादि.

पूजा विधि:-

इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि नित्य कर्म करने के पश्चात घर की मंदिर की साफ सफाई करें तथा गंगाजल से छिड़काव करें तथा भगवान श्री हरि विष्णु जी की चित्र प्रतिमा को या मूर्ति को स्थापित करें तत्पश्चात घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।इस दिन माता तुलसी और शालीग्राम भगवान की भी विधि- विधान से पूजा करें।भगवान श्री हरि विष्णु जी की आरती करें तथा भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं। इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।तथा मन ही मन भगवान का ध्यान भी लगाते रहे.

पूजन मंत्र:-

भगवान श्री हरि विष्णु जी की पूजा करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्य यंत्रों के साथ निम्न मंत्रों का जाप करें:-

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते।त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।।

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे।

हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरु।।

इसके बाद भगवान श्री हरि विष्णु जी की आरती करें और फूल अर्पण करके निम्न मंत्रों से प्रार्थना करें:-

इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।

त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।

इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।

न्यूनं संपूर्णतां यातु त्वत्वप्रसादाज्जनार्दन।।

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इसी जानकारी के साथ में आचार्य दयानन्द आज के अपने इस विषय को अभी विराम देता हूं.तथा कामना करता हूं .की आप सब लोगो को मेरी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। जय श्री कृष्णा…..

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