राधे राधे दोस्तो मैं आचार्य दयानन्द आप सभी लोगो का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत करता हूं. ईश्वर से कामना करता हूं आप सब लोग खुश होंगे सुखी होंगे संपन्न होंगे…..
दोस्तों में आज आपको पुत्रदा एकादशी के बारे में बताने जा रहा हूं.
यह श्रावण मास की शुक्ल पक्ष एकादशी होती है तथा उसका महत्व भी बहुत ही खास होता है कथा भगवान शिव की भी कृपा प्राप्त हो जाती है और भगवान श्री हरि विष्णु जी पूर्ण रूप से प्रसन्न होकर मनोवांछित फल की पूर्ति कर देते हैं तथा जीवन सुख में भी व्यतीत होने लग जाता है.
पुत्रदा एकादशी का समय:-
पुत्रदा एकादशी का प्रारंभ 7 अगस्त 2022, रविवार के दिन रात 11:50 मिनट पर होगा. इस तिथि का समापन 8 अगस्त 2022, सोमवार को रात 9 बजे होगा.उदया तिथि के अनुसार यह एकादशी 8 अगस्त 2022 को बनाया जाए.
पुत्रदा एकादशी का महत्व:-
इसी दिन पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान श्री हरि विष्णु जी की पूजा अर्चना की जाती है तथा जिंदगी में यह जगत है ऐश्वर्य की कमी हो रहे हो तू भी श्री हरि विष्णु जी की पूजा पाठ करने से खोया हुआ ऐश्वर्य फिर से प्राप्त हो जाता है तथा बहुत ही की गुनी और सर्वगुण संपन्न पुत्र की प्राप्ति होती है तथा जिंदगी की सभी अभिलाषा ए भी पूर्ण हो जाती हैं.
पूजा सामग्री:-
भगवान श्री हरि विष्णु जी की बालस्वरूप की मूर्ति या चित्र,आसन बैठने के लिए पंचामृत,पीले फूल,पीले पुष्प, तुलसी, इत्यादि….
पूजा विधि:-
इस दिन व्यक्ति को प्रातःकाल जल्दी उठकर नित्य कर्म कर स्नान आदि कर लेना चाहिए। तथा स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। तत्पश्चात स्नान ध्यान के बाद पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। समीप के किसी मंदिर या घर के मंदिर में भगवान विष्णु को पील फल, पीले पुष्प, पंचामृत, तुलसी आदि अर्पित करना चाहिए। यदि आप पुत्र कामना के लिए व्रत रखते है तो पति-पत्नी दोनों को ही व्रत का संकल्प लेना पड़ेगा। या फिर अपने मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए यदि अगर आप यह व्रत रखते हैं तो भी आपको अपने परिवार के साथ भगवान श्री हरि विष्णु जी के कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। भगवान कृष्ण को पंचामृत बहुत पंसद है,इसलिए भगवान श्री कृष्ण को पंचामृत का भोग लगाकर सभी में प्रसाद के रूप में बांट देना चाहिए तथा पीले फूल अर्पित करने के तत्पश्चात पीले फल इत्यादि भी प्रसाद के रूप में बांट देना चाहिए.
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा:-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय में भद्रावती राज्य का राजा सुकेतुमान था. उसका विवाह शैव्या नाम की राजकुमारी से हुआ था. उसके राज्य में हर प्रकार की सुख, सुविधा और वैभव था. उसकी प्रजा भी खुश थे. विवाह के काफी समय व्यतीत हो जाने के बाद भी सुकेतुमान की कोई संतान नहीं हुई. इस वजह से पति और पत्नी काफी दुखी और चिंतित रहते थे.राजा सुकेतुमान को इस बात की चिंता थी कि उनका पुत्र नहीं है, तो फिर उनका पिंडदान कौन करेगा. इन सबसे राजा का मन इतना व्यथित हो गया कि वह खुद के ही प्राण लेने की सोचने लगा. हालांकि उसने ऐसा कदम नहीं उठाया. राजकाज से भी उसका मन उचट गया. ऐसे में वह एक दिन वन की ओर प्रस्थान कर गया.
राजा चलते चलते एक तालाब के किनारे पहुंच गया. वह दुखी मन से वहां बैठा हुआ था. तभी उसे कुछ दूरी पर एक आश्रम दिखाई दिया. वह उस आश्रम में गया. वहां उसने सभी ऋषियों को प्रणाम किया. तब ऋषियों ने उससे इस वन में आने का कारण पूछा. तब राजा ने अपने दुख का कारण बताया. ऋषि ने राजा सुकेतुमान से कहा कि संतान प्राप्ति के लिए उनको पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत विधिपूर्वक रखना होगा. ऋषि ने पुत्रदा एकादशी व्रत की महिमा का वर्णन किया.अपनी समस्या का हल पाकर राजा वहां से खुश होकर वापस अपने महल में आ गया. फिर पुत्रदा एकादशी का व्रत आने पर राजा और पत्नी ने व्रत रखा और विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा की. पुत्रदा एकादशी के व्रत नियमों का पालन किया. इसके फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं और फिर राजा को एक पुत्र प्राप्त हुआ. इस प्रकार से जो भी पुत्रदा एकादशी का व्रत रखता है, उसे पुत्र की प्राप्ति होती है
जाप मंत्र:-
1.ॐ गोविन्दाय, माधवाय नारायणाय नम:
2.संतान गोपाल मंत्र (ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः)
1.ॐ क्लीं देवकी सुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते,
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम् गता।
2.वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
यः पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
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इसी जानकारी के साथ में आचार्य दयानन्द आज के अपने इस विषय को अभी विराम देता हूं.तथा कामना करता हूं .की आप सब लोगो को मेरी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। जय श्री कृष्णा दोस्तो…
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