रमा एकादशी

रमा एकादशी

ऊँ नमः शिवाय।
राधे राधे दोस्तो मैं आचार्य दयानन्द आप सभी लोगो का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत करता हूं.ईश्वर से कामना करता हूं आप सब लोग खुश होंगे सुखी होंगे संपन्न होंगे…..

दोस्तों आज मैं आपको इस ब्लॉग में रमा एकादशी के विषय में बताने जा रहा हूं वैसे तो एकादशी का महत्व  हिंदू धर्म ग्रंथ में महत्वपूर्ण माना गया है उनमें से रमा एकादशी का महत्व भी अपना ही महत्व है.

रमा एकादशी का महत्व:-

रमा एकादशी का अपना ही महत्व होता है  हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार माता लक्ष्मी को रमा कहा जाता है तथा माता लक्ष्मी के ही नाम से इस एकादशी को रखा जाता है इस दिन माता लक्ष्मी तथा भगवान् श्री हरी विष्णु जी की एक साथ पूजा की जाती है. इस व्रत को करने से सुख-समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है। इस दिन विधिवत पूजा करने से धन से जुड़ी समस्याओं का अंत हो जाता है। कर्ज आदि से मुक्ति मिलने की मान्यता है।

रमा एकादशी का समय:-

एकादशी तिथि आरंभ: 31 अक्टूबर 2021 को दोपहर 2:27 पर होगी तथा एकादशी तिथि समाप्त: 01 नवम्बर 2021 को दोपहर 1:21 पर होगी परंतु उदया तिथि के अनुसार रमा एकादशी 1 नवंबर 2021 को ही मनाई जाएगी.

रमा एकादशी व्रत के लिए पूजा सामग्री:-

भगवान श्री हरि विष्णु तथा माता लक्ष्मी जी की मूर्ति या प्रतिमा, तुलसी, गंगाजल,दीप,पुष्प, फल, मिष्ठान( मिठाई), सात्विक भोजन, इत्यादि…

रमा एकादशी के लिए व्रत विधि:-

सुबह ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठकर स्नान आदि नित्य कर्म करने के तत्पश्चात  स्वच्छ कपड़े धारण करें तथा घर की मंदिर की सफाई करें गंगाजल से छिड़काव करें तथा मंदिर में माता लक्ष्मी श्री हरि विष्णु जी की मूर्तियां प्रतिमा को स्थापित कर दे. भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।भगवान की आरती करें। भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं। इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें। इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।

रमा एकादशी के लिए मंत्र तथा उपाय:-

1.ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥ 

2.ॐ क्लीं क्लीं क्लीं कृष्णाय नम:। 

3.ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। 

4.ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।।

Note:-आप इन मंत्रों का जाप रुद्राक्ष, तुलसी इत्यादि की माला से कर सकते हैं.

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इसी जानकारी के साथ में आचार्य दयानन्द आज के अपने इस विषय को अभी विराम देता हूं.तथा कामना करता हूं .की आप सब लोगो को मेरी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। जय श्री कृष्णा…..

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