राधे राधे दोस्तो मैं आचार्य दयानन्द आप सभी लोगो का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत करता हूं. ईश्वर से कामना करता हूं आप सब लोग खुश होंगे सुखी होंगे संपन्न होंगे…
दोस्तों में आज आपको पुत्रदा एकादशी के बारे में बताने जा रहा हूं क्योंकि इसका महत्व भी हमारे हिंदू पुराणों में बहुत ज्यादा चर्चित विषय माना जाता है क्योंकि इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु जी का ध्यान पूजा इत्यादि किया जाता है तथा सभी प्रकार के मनोकामनाओं की भी पूर्ति हो जाती है यह श्रावण मास की शुक्ल पक्ष एकादशी होती है तथा उसका महत्व भी बहुत ही खास होता है कथा भगवान शिव की भी कृपा प्राप्त हो जाती है और भगवान श्री हरि विष्णु जी पूर्ण रूप से प्रसन्न होकर मनोवांछित फल की पूर्ति कर देते हैं तथा जीवन सुख में भी व्यतीत होने लग जाता है.
पुत्रदा एकादशी का समय:-
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि इस बार 18 अगस्त दिन बुधवार सुबह 03 बजकर 20 मिनट से शुरू होगी, जबकि समापन उसी दिन देर रात 01 बजकर 05 मिनट पर होगा. इस वजह से पुत्रदा एकादशी व्रत 18 अगस्त को रखा जाएगा. कथा पारण का समय 19 अगस्त 2021 को सुबह 6:32 से 8:29 तक रहेगा.
पुत्रदा एकादशी का महत्व:-
इसी दिन पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान श्री हरि विष्णु जी की पूजा अर्चना की जाती है तथा जिंदगी में यह जगत है ऐश्वर्य की कमी हो रहे हो तू भी श्री हरि विष्णु जी की पूजा पाठ करने से खोया हुआ ऐश्वर्य फिर से प्राप्त हो जाता है तथा बहुत ही की गुनी और सर्वगुण संपन्न पुत्र की प्राप्ति होती है तथा जिंदगी की सभी अभिलाषा ए भी पूर्ण हो जाती हैं.
पुत्रदा एकादशी का हमारे जन्म कुंडली पर प्रभाव:-
यदि व्यक्ति के जन्म कुंडली में गुरु के पीड़ित होने के वजह से यदि अगर संतान प्राप्ति में कोई बाधा आ रही हो तो गुरु का दोस्त पूर्ण रूप से दूर हो जाता है तथा संतान की प्राप्ति हो जाती है यदि जन्म कुंडली में पुत्र का कारक भाव पंचम भाव भी खराब हो तो पुत्रदा एकादशी के दिन पूजा पाठ इत्यादि करने से जन्म कुंडली का पांचवा घर भी बलवान होता है तथा संतान की प्राप्ति हो जाती है.
पूजा सामग्री:-
भगवान श्री हरि विष्णु जी की बालस्वरूप की मूर्ति या चित्र,आसन बैठने के लिए पंचामृत,पीले फूल,पीले पुष्प, तुलसी, इत्यादि….
पूजा विधि:-
इस दिन व्यक्ति को प्रातःकाल जल्दी उठकर नित्य कर्म कर स्नान आदि कर लेना चाहिए। तथा स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। तत्पश्चात स्नान ध्यान के बाद पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। समीप के किसी मंदिर या घर के मंदिर में भगवान विष्णु को पील फल, पीले पुष्प, पंचामृत, तुलसी आदि अर्पित करना चाहिए। यदि आप पुत्र कामना के लिए व्रत रखते है तो पति-पत्नी दोनों को ही व्रत का संकल्प लेना पड़ेगा। या फिर अपने मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए यदि अगर आप यह व्रत रखते हैं तो भी आपको अपने परिवार के साथ भगवान श्री हरि विष्णु जी के कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। भगवान कृष्ण को पंचामृत बहुत पंसद है,इसलिए भगवान श्री कृष्ण को पंचामृत का भोग लगाकर सभी में प्रसाद के रूप में बांट देना चाहिए तथा पीले फूल अर्पित करने के तत्पश्चात पीले फल इत्यादि भी प्रसाद के रूप में बांट देना चाहिए.
जाप मंत्र:-
1.ॐ गोविन्दाय, माधवाय नारायणाय नम:
2.संतान गोपाल मंत्र (ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः)
3.एकादशी की आरती:-
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।।
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।।
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।।
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इसी जानकारी के साथ में आचार्य दयानन्द आज के अपने इस विषय को अभी विराम देता हूं.तथा कामना करता हूं .की आप सब लोगो को मेरी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। जय श्री कृष्णा दोस्तो…
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