ऊँ नमः शिवाय।
राधे राधे दोस्तो मैं आचार्य दयानन्द आप सभी लोगो का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत करता हूं.ईश्वर से कामना करता हूं आप सब लोग खुश होंगे सुखी होंगे संपन्न होंगे…..
दोस्तों आज आपको मैं अपनी इस ब्लॉग में मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी के विषय में बताने जा रहा हूं.
मोक्षदा एकादशी का महत्व:-
हमारे हिंदू धर्म ग्रंथ के पुराणों में मोक्षदा एकादशी का एक विशेष महत्व बताया गया है इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु जी की पूजा अर्चना की जाती है तथा जो भक्त मोक्षदा एकादशी के उपवास का पालन करते हैं, वह मोक्ष प्राप्त करते हैं, तथा जन्म-मरण के निरंतर चक्र से मुक्ति पा जाते हैं। इसे ‘मौना एकादशी’ के रूप में भी जाना जाता है जिसमें भक्त पूरे दिन ‘मौन’ (चुप) रहते हैं। तथा उनको जिंदगी में सुख संपन्नता की प्राप्ति होती है तथा धन वैभव यश की भी प्राप्ति होती है.
मोक्षदा एकादशी का समय:-
हमारे ज्योतिष शास्त्र में हिंदू पंचांग के अनुसार मोक्षदा एकादशी का समय 13 दिसंबर 2021 के रात्रि 9:32 से शुरू हो रही है तथा 14 दिसंबर 2021 के रात्रि 11:35 तक रहने वाला है परंतु उदया तिथि के अनुसार इस एकादशी को 14 दिसंबर 2021 को ही मनाया जाएगा.
मोक्षदा एकादशी के लिए पूजन सामग्री:-
भगवान श्री हरि विष्णु जी की मूर्तियां या प्रतिमा,पुष्प, पुष्पों की माला, घी का दीपक, मिष्ठान, तुलसी, गंगाजल, साबुत धनिया, इत्यादि.
मोक्षदा एकादशी के लिए पूजन विधि:-
मोक्षदा एकादशी के दिन आप सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि नित्य कर्म करने के तत्पश्चात स्वच्छ कपड़े भी धारण करें तथा घर के मंदिर की साफ सफाई करें गंगाजल से छिड़काव करें तथा घर के मंदिर में भगवान श्री हरि विष्णु जी की मूर्तियां प्रतिमा को स्थापित करें तथा आप भगवान के समक्ष अगरबत्ती तथा घी का दीपक जलाए घी के दीपक में आप साबुत धनिया थोड़ी सी मात्रा में डालकर फिर आप दीपक जलाएं तत्पश्चात भगवान को मिष्ठान तथा तुलसी पत्र अर्पित करें तत्पश्चात आप भगवान की आरती तथा कीर्तन करें. पूजन के पश्चात आप लोगों में भगवान को चढ़ाए गए भोग को प्रसाद के रूप में लोगों को अर्पित करें.
मोक्षदा एकादशी के लिए व्रत कथा:-
हमारी हिंदू धर्म ग्रंथ के पुराणों में वर्णन किया गया है कि एक समय गोकुल नगर में वैखानस नामक राजा राज करते थे और उनके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। जब राजा का सपना टूटा तो उसे बहुत ही अचरज हुआ कि उसके पिता नरक में कैसे हैं।
सुबह होते ही राजा विद्वान ब्राह्मण के पास गए और अपने स्वप्न का कष्ट सुनाया। कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट भोगते पाया है। उन्होंने मुझसे इस नरक से मुक्त कराने को कहा है। मैं यह सब देख बहुत बेचैन हूं और दुखी भी। मेरा मन बहुत अशांत है। ये सारे सुख मुझे नगण्य लग रहे हैं। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं हो रहा है। कृप्या कर मुझे इस यातना से निकलने और अपने पिता को नरक से मुक्त करने का उपाय बताएं।
राजा ने कहा, हे ब्राह्मण देवता इस दु:ख से मेरा तन-मन जल रहा है। कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि कोई उपाय बताएं जिससे मेरे पिता को नरक से मुक्ति मिले। तब ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन आप पर्वत ऋषि के आश्रम जाएं और उन्हीं से इसका उपाय पूछें।
राजा तुरंत मुनि के आश्रम पर गए और देखा कि आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन मुझे एक कष्ट खाए जा रहा है और राजा ने अपना स्वप्न मुनि को सुना दिया। पर्वत मुनि ने आँखें बंद कर सब ज्ञान कर आंखें खोलीं और बताया कि पूर्व जन्म में आपके पिता ने कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान माँगने पर भी नहीं दिया। उसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा।
तब राजा ने कहा इसका कोई उपाय बताइए। मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति होगी। मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया। इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुएवे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग चले गए।
मोक्षदा एकादशी के लिए मंत्र तथा उपाय:-
१:- एकादशी या गुरुवार के दिन भगवान विष्णु का स्मरण कर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करना फलदायी रहता है।
२:- श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
३:- ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
४:- ॐ विष्णवे नम:!
५:- दन्ताभये चक्र दरो दधानं, कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्। धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।
६:- ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
७:- विष्णु के पंचरूप मंत्र — ॐ अं वासुदेवाय नम:! – ॐ आं संकर्षणाय नम:! – ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:! – ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:! – ॐ नारायणाय नम:!
८:- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
९:- ॐ नमो नारायण!
१०:- श्री मन नारायण नारायण हरि हरि!
११:- ॐ हूं विष्णवे नम:!
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इसी जानकारी के साथ में आचार्य दयानन्द आज के अपने इस विषय को अभी विराम देता हूं.तथा कामना करता हूं .की आप सब लोगो को मेरी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। जय श्री कृष्णा…..
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