ऊँ नमः शिवाय।
राधे राधे दोस्तो मैं आचार्य दयानन्द आप सभी लोगो का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत करता हूं.तथा ईश्वर से कामना करता हूं की आप सब लोग खुश होंगे सुखी होंगे संपन्न होंगे…..
जया एकादशी का यह व्रत बहुत ही पुण्यदायी होता है।माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि जया एकादशी व्रत कहलाती है। जया एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष, पाप-कष्ट से मुक्ति मिलती है।इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत करने वाले व्यक्ति को भूत-प्रेत, पिशाच जैसी योनियों में जाने का भय नहीं रहता है।
जया एकादशी के लिए व्रत का समय:-
जया एकादशी एक 11 फरवरी 2022, शुक्रवार दोपहर 01:52 मिनट पर प्रारंभ होगी तथा 12 फरवरी 2022, शनिवार सायं 04:27 मिनट तक रहेगी.परंतु उदया तिथि के अनुसार या व्रत 12 फरवरी 2022 को रखा जाएगा. तथा व्रत पारण का समय13 फरवरी 2022, रविवार प्रात: 07: 01 मिनट से प्रातः 09:15 मिनट के मध्य तक रहेगा.
जया एकादशी व्रत के लिए पूजन सामग्री:-
धूप, दीप, पुष्प, फल, पंचामृत, गंगाजल, अगरबत्ती, अक्षत, रोली,सुगंधित पदार्थ, भगवान श्री हरि विष्णु जी की मूर्ति या प्रतिमा इत्यादि.
जया एकादशी व्रत के लिए पूजन विधि:-
इस दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि नित्य कर्म करने के पश्चात स्वच्छ कपड़े धारण कर लें तथा घर के मंदिर की साफ सफाई करें तथा गंगाजल से छिड़काव करें तत्पश्चात घर के मंदिर में भगवान श्री हरि विष्णु जी की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें तत्पश्चात व्रत का संकल्प लेकर धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि अर्पित करके भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार की पूजा करनी चाहिए।रात्रि में जागरण कर श्री हरि के नाम के भजन करना चाहिए।द्वादशी के दिन किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए।
जया एकादशी व्रत के लिए कथा:-
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय में देवराज इंद्र नंदन वन में अप्सराओं के साथ गंधर्व गान कर रहे थे, जिसमें प्रसिद्ध गंधर्व पुष्पदंत, उनकी कन्या पुष्पवती तथा चित्रसेन और उनकी पत्नी मालिनी भी उपस्थित थीं। इस विहार में मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित हो गंधर्व गान में साथ दे रहे थे। उस समय गंधर्व कन्या पुष्पवती, माल्यवान को देख कर उस पर मोहित हो गई और अपने रूप से माल्यवान को वश में कर लिया। इस कारण दोनों सुर और ताल के बिना गान करने लगे। इसे इंद्र ने अपना अपमान समझा और दोनों को श्राप देते हुए कहा- तुम दोनों ने न सिर्फ यहां की मर्यादा को भंग किया है, बल्कि इंद्र की आज्ञा का भी उल्लंघन किया है। इस कारण तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्युलोक जाकर वहीं अपने कर्म का फल भोगते रहो। इंद्र के श्राप से दोनों पृथ्वीलोक में हिमालय में अपना जीवन दुखपूर्वक बिताने लगे। दुखी होकर दोनों ने निर्णय लिया कि वो देव आराधना करें और संयम से जीवन गुजारें। उसी तरह एक दिन माघ मास में शुक्लपक्ष एकादशी तिथि आ गयी। दोनों ने निराहार रहकर दिन गुजारा और पूरे दिन भगवान विष्णु को स्मरण करते रहे। दूसरे दिन प्रात: उन दोनों को व्रत के पुण्य प्रभाव से मृत्यलोक से मुक्ति मिल गई और दोनों को पुन:अप्सरा का नवरूप प्राप्त हुआ और वे स्वर्गलोक चले गए।
जया एकादशी व्रत के लिए मंत्र तथा उपाय:-
1.ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।। – ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर।
2.दरिद्रता से मुक्ति पाने के लिए के लिए कीजिए इन मंत्रों का जाप:-
ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।।
3.अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए:-
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
4. धन-वैभव एवं संपन्नता का मंत्र:-
ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
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इसी जानकारी के साथ में आचार्य दयानन्द आज के अपने इस विषय को अभी विराम देता हूं.तथा कामना करता हूं .की आप सब लोगो को मेरी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। जय श्री कृष्णा…..
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