होली तथा होलिका दहन:-

ऊँ नमः शिवाय।
राधे राधे दोस्तो मैं आचार्य दयानन्द आप सभी लोगो का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत करता हूं.तथा ईश्वर से कामना करता हूं की आप सब लोग खुश होंगे सुखी होंगे संपन्न होंगे…..

होली तथा होलिका दहन, होली त्योहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है।

होली का महत्व:-

होलिका की अग्नि को अत्यंत पवित्र माना जाता है और अगर आप अग्नि की परिक्रमा करते हुए मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं, तो आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक होलिका दहन की कहानी विष्णु के भक्त प्रह्लाद, उसके राक्षस पिता हिरण्यकश्यप और उसकी बुआ होलिका से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि होलिका की आग बुराई को जलाने का प्रतीक है। इसे छोटी होली के नाम से भी पुकारा जाता है। इसके अगले दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य में होली मनाई जाती है।

होली तथा होलिका दहन का समय:-

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 17 मार्च 2022 को रात 9:20 बजे से 10:31 बजे के बीच रहेगा. होलिका दहन का समय लगभग 1:10 मिनट का होगा. इस दौरान होलिका की पूजा करना लाभकारी रहेगा.तथा होली(धुलंडी) शुक्रवार 18 मार्च 2022 के दिन खेली जाएगी.

होली का दहन के लिए पूजन सामग्री:-

गाय का गोबर,माला, रोली, धूप, फूल,  गुड़, हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, पांच या सात प्रकार के अनाज, गेहूं और अन्य फसलें,इत्यादि.

होलिका दहन के लिए पूजन विधि:-

इस दिन प्रात काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि नित्य कर्म करने के तत्पश्चात स्वच्छ कपड़े धारण कर ले तत्पश्चात सुनिश्चित करें कि आपका मुख पूर्व या उत्तर की ओर है.फिर गाय के गोबर से होलिका और प्रह्लाद की मूर्ति बनाएं.होलिका को माला, रोली, धूप, फूल,  गुड़, हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, पांच या सात प्रकार केअनाज, गेहूं और अन्य फसलें अर्पित करें.इसके अलावा भगवान नरसिंह की पूजा करें और अग्नि के सात फेरे लें.परिक्रमा करते समय अपने परिवार के कल्याण के लिए प्रार्थना करें.

होलिका दहन के लिए कथा:-


होली की कहानी का संबंद्ध श्री हरि विष्णु जी से है। नारद पुराण के अनुसार आदिकाल में हिरण्यकश्यप नामक एक राक्षस हुआ था। दैत्यराज खुद को ईश्वर से भी बड़ा समझता था। वह चाहता था कि लोग केवल उसकी पूजा करें। लेकिन उसका खुद का पुत्र प्रह्लाद परम विष्णु भक्त था। भक्ति उसे उसकी मां से विरासत के रूप में मिली थी। हिरण्यकश्यप के लिए यह बड़ी चिंता की बात थी कि उसका स्वयं का पुत्र विष्णु भक्त कैसे हो गया? और वह कैसे उसे भक्ति मार्ग से हटाए।जब हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को विष्णु भक्ति छोड़ने के लिए कहा परन्तु अथक प्रयासों के बाद भी वह सफल नहीं हो सका।कई बार समझाने के बाद भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकश्यप ने अपने ही बेटे को जान से मारने का विचार किया। कई कोशिशों के बाद भी वह प्रह्लाद को जान से मारने में नाकाम रहा। बार-बार की कोशिशों से नाकम होकर हिरण्यकश्यप आग बबूला हो उठा। इसके बाद उसने अपनी बहन होलिका से मदद ली जिसे भगवान शंकर से ऐसा चादर मिला था जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। तय हुआ कि प्रह्लाद को होलिका के साथ बैठाकर अग्निन में स्वाहा कर दिया    जाएगा।होलिका अपनी चादर को ओढकर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गयी। लेकिन विष्णु जी के चमत्कार से वह चादर उड़ कर प्रह्लाद पर आ गई जिससे प्रह्लाद की जान बच गयी और होलिका जल गई। इसी के बाद से होली की संध्या को अग्नि जलाकर होलिका दहन का आयोजन किया जाता है।

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इसी जानकारी के साथ में आचार्य दयानन्द आज के अपने इस विषय को अभी विराम देता हूं.तथा कामना करता हूं .की आप सब लोगो को मेरी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। जय श्री कृष्णा दोस्तो…

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