माता ब्रह्मचारिणी जी पूजन विधि

ऊँ नमः शिवाय।
राधे राधे दोस्तो मैं आचार्य दयानन्द आप सभी लोगो का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत करता हूं.ईश्वर से कामना करता हूं आप सब लोग खुश होंगे सुखी होंगे संपन्न होंगे

दोस्तों आज मैं आपको इस ब्लॉग में नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजन विधि के विषय में बताने जा रहा हूं

माता ब्रह्मचारिणी जी के पूजन का महत्व:-

मां ब्रह्मचारिणी के नाम का अर्थ- ब्रह्म मतलब तपस्या और चारिणी का अर्थ आचरण करने वाली देवी होता है। मां ब्रह्मचारिणी के हाथों में अक्ष माला और कमंडल सुसज्जित हैं। अगर मां का सच्चे मन से पूजन किया जाए तो व्यक्ति को ज्ञान सदाचार लगन, एकाग्रता और संयम रखने की शक्ति प्राप्त होती है।

माता ब्रह्मचारिणी जी के पूजन विधि:-

इस दिन आप सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने नित्य कर्म इत्यादि करने के पश्चात आप अपने घर के मंदिर की साफ सफाई करें तथा इसके बाद आसन पर बैठ जाएं। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। उन्हें फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पित करें। मां को दूध, दही, घृत, मधु व शर्करा से स्नान कराएं। मां को भोग लगाएं। उन्हें पिस्ते की मिठाई का भोग लगाएं। फिर उन्हें पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें। मां के मंत्रों का जाप करें और आरती करें।

माता ब्रह्मचारिणी जी के पूजन में उपयोग की जाने वाली मंत्र:-

मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र:-

या देवी सर्वभेतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठ:-

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।

ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।

शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥

मां ब्रह्मचारिणी का कवच:-

त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।

अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥

पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥

षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।

अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।

मां ब्रह्मचारिणी की आरती:-

जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।

जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।

ब्रह्मा जी के मन भाती हो।

ज्ञान सभी को सिखलाती हो।

ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।

जिसको जपे सकल संसारा।

जय गायत्री वेद की माता।

जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।

कमी कोई रहने न पाए।

कोई भी दुख सहने न पाए।

उसकी विरति रहे ठिकाने।

जो ​तेरी महिमा को जाने।

रुद्राक्ष की माला ले कर।

जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।

आलस छोड़ करे गुणगाना।

मां तुम उसको सुख पहुंचाना।

ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।

पूर्ण करो सब मेरे काम।

भक्त तेरे चरणों का पुजारी।

रखना लाज मेरी महतारी।

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इसी जानकारी के साथ में आचार्य दयानन्द आज के अपने इस विषय को अभी विराम देता हूं.तथा कामना करता हूं .की आप सब लोगो को मेरी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। जय श्री कृष्णा…..

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