ऊँ नमः शिवाय।
राधे राधे दोस्तो मैं आचार्य दयानन्द आप सभी लोगो का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत करता हूं.ईश्वर से कामना करता हूं आप सब लोग खुश होंगे सुखी होंगे संपन्न होंगे….
दोस्तों आज मैं आपको अपने इस ब्लॉग में वरुथिनी एकादशी के विषय में बताने जा रहा हूं.
वरुथिनी एकादशी का महत्व:-
इस साल वरुथिनी एकादशी पर त्रिपुष्कर योग बन रहा है.वरुथिनी एकादशी व्रत रखने से कष्टों से मुक्ति मिलती है और स्वर्ग की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा अर्चना करने और उनकी कृपा से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
वरुथिनी एकादशी का समय:-
वैशाख कृष्ण एकादशी तिथि 25 अप्रैल दिन सोमवार को देर रात 01 बजकर 37 मिनट पर शुरु हो रही है. यह तिथि 26 अप्रैल दिन मंगलवार को देर रात 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगी. परंतु उदया तिथि के अनुसार यह व्रत 26 अप्रैल 2022 के दिन रखा जाएगा. वरुथिनी एकादशी व्रत का पारण 27 अप्रैल दिन बुधवार को सुबह 06 बजकर 41 मिनट से सुबह 08 बजकर 22 मिनट के बीच कर लिया जाना चाहिए.
वरुथिनी एकादशी के लिए पूजन सामग्री:-
भगवान श्री हरि विष्णु जी की मूर्ति या प्रतिमा, फल, फुल, मिष्ठान, पुष्प माला, गंगाजल, तुलसी दल, इत्यादि..
वरुथिनी एकादशी के लिए पूजन विधि:-
इस दिन आप सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि नित्य कर्म करने गए तत्पश्चात स्वच्छ कपड़े धारण कर लें तथा घर की साफ सफाई करें तथा घर के मंदिर की भी साफ सफाई करें तत्पश्चात गंगा जल से छिड़काव करें तथा घर के मंदिर में भगवान श्री हरि विष्णु जी के मूर्ति या प्रतिमा को स्थापित करें तत्पश्चात उनको फल फूल मिष्ठान पुष्पमाला तथा तुलसी दल अर्पित करें तथा मन ही मन भगवान श्री हरि विष्णु जी के मंत्रों का जाप भी करते रहे. इस दिन पीपल के वृक्ष की भी पूजा करने का विधान है तथा भगवान श्री हरि विष्णु जी के साथ लक्ष्मी जी की पूजा करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है तथा अगले दिन द्वादशी के समय अपना व्रत पारण करें तथा ब्राह्मणों को भोजन इत्यादि करें.
वरुथिनी एकादशी के लिए व्रत कथा:-वरुथिनी एकादशी की कथा के अनुसार एक समय नर्मदा नदी के तट पर मांधाता नाम के राजा का राज्य था। राजा की रुचि हमेशा धार्मिक कार्यों में रहती थी। वह हमेशा पूजा-पाठ करते रहते थे। एक बार राजा जंगल में तपस्या कर रहे थे कि अचानक वहां एक जंगली भालू आया और उनका पैर काटने लगा। राजा इस घटना से भयभीत नहीं हुए और कष्ट सहते हुए भी अपनी तपस्या में लीन रहे। बाद में वे भालू उनके पैर को चबाते हुए घसीटकर पास के जंगल में ले गया, तब राजा मान्धाता ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। राजा की पुकार सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और अपने सुदर्शन चक्र से भालू का अंत कर दिया। राजा का पैर भालू खा चुका था। दुखी भक्त को देखकर भगवान विष्णु बोले- ‘हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगो वाले हो जाओगे। जिस तरह से वरुथिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा मधांता को कष्टों से मुक्ति प्राप्त हुई उसी प्रकार से यह व्रत भक्तों को कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला व्रत है।
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इसी जानकारी के साथ में आचार्य दयानन्द आज के अपने इस विषय को अभी विराम देता हूं.तथा कामना करता हूं .की आप सब लोगो को मेरी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। जय श्री कृष्णा दोस्तो…
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