अपरा एकादशी

ऊँ नमः शिवाय।
राधे राधे दोस्तो मैं आचार्य दयानन्द आप सभी लोगो का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत करता हूं.ईश्वर से कामना करता हूं आप सब लोग खुश होंगे सुखी होंगे संपन्न होंगे…

दोस्तों आज मैं आपको अपरा एकादशी के विषय में बताने जा रहा हूं

अपरा एकादशी का महत्व:-

इसे मोक्षदायनी भी कहा जाता है. इस व्रत रखने से मृत्यु के बाद व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है. भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति को अपाप पुण्य लाभ मिलता है. जीवन में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है 

अपरा एकादशी का समय:- 

एकादशी की तिथि 25 मई 2022, बुधवार सुबह 10:32 से आरंभ होगी और 26 मई 2022, गुरुवार सुबह 10:54 मिनट पर तिथि का समापन होगा. उदयातिथि के अनुसार अपरा एकादशी का व्रत 26 मई 2022 के दिन रखा जाएगा. व्रत के पारण का समय 27 मई 2022 शुक्रवार प्रातः 05 :30 मिनट से लेकर 08:05 मिनट तक है.

अपरा एकादशी के लिए पूजा सामग्री:-

भगवान श्री हरि विष्णु जी की मूर्ति या प्रतिमा, वामन देव जी की मूर्तियां प्रतिमा, देसी घी, दीपक( जलाने के लिए), तथा साफ-सुथरे वस्त्र(भगवान को पहनाने के लिए), मिठाई, फल, नैवेद्य, अक्षत, धूप, इत्यादि.

पूजा विधि:-

अपरा एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान आदि नित्य कर्म कर लेने के तत्पश्चात आप स्वच्छ कपड़े धारण करें तथा घर के मंदिर की सफाई करें तथा भगवान की प्रतिमा या मूर्ति को स्थापित करें तथा रोली कुमकुम का तिलक लगाएं. धूप दीप नैवेद्य चढ़ाकर भगवान विष्णु की पूजा करें.जलाभिषेक करने के लिए शंख का प्रयोग करें शंख माता लक्ष्मी को अत्यधिक प्रिय है. इसलिए शंख से जलाभिषेक या दुग्ध का अभिषेक करने से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है.व्रत पारण के समय ब्राह्मणों को भोजन कराएं और यथासंभव दान दें.इससे आर्थिक उन्नति होती है, और मानसिक लाभ प्राप्त होता है. इस दिन साबुन का प्रयोग न करें. नाखून और बाल न काटे.

अपरा एकादशी व्रत कथा:-

इसकी प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को ज्ञानचक्षु से देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया।दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को सप्रेम धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।

हे राजन! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।

अपरा एकादशी के लिए पूजा मंत्र:-

विष्णु मूल मंत्र

ॐ नमोः नारायणाय॥

भगवते वासुदेवाय मंत्र

ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥

विष्णु गायत्री मंत्र

ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥

श्री विष्णु मंत्र

मंगलम भगवान विष्णुः, मंगलम गरुणध्वजः। मंगलम पुण्डरी काक्षः, मंगलाय तनो हरिः॥

विष्णु स्तुति

शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।

लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं

वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥

यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे: ।

सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा: ।

ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो

यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम: ॥

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इसी जानकारी के साथ में आचार्य दयानन्द आज के अपने इस विषय को अभी विराम देता हूं.तथा कामना करता हूं .की आप सब लोगो को मेरी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। जय श्री कृष्णा दोस्तो…

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