ऊँ नमः शिवाय।
राधे राधे दोस्तो मैं आचार्य दयानन्द आप सभी लोगो का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत करता हूं.ईश्वर से कामना करता हूं आप सब लोग खुश होंगे सुखी होंगे संपन्न होंगे…..
दोस्तों आज मैं आपको इस ब्लॉक में जिउतिया अर्थात जीवित्पुत्रिका व्रत के विषय में बताने जा रहा हूं पुराणों में जीवित्पुत्रिका व्रत की मान्यता हमारे जिंदगी में बहुत ही खास बताई गई है तथा हिंदू धर्म ग्रंथ के अनुसार इस व्रत को अनंत काल से ही किया जाता आ रहा है. ज्योतिष गणना के अनुसार तथा शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को रखने से इंसान की मनोकामनाएं किसी भी प्रकार की हो पूर्ण हो जाती है.
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व:-
हिंदू शास्त्र के धर्म ग्रंथों के अनुसार इस व्रत को रखने से संतान की लंबी आयु, निरोग जीवन, सुखी रहने की कामना से ये व्रत किया जाता है. मान्यता है कि अगर कोई इस व्रत की कथा को सुनता है तो उसके जीवन में कभी संतान वियोग नहीं होता. तथा भाग्यशाली संतान की प्राप्ति होती है इसके अलावा जातक के घर में सदैव लक्ष्मी का भी वास रहता है.तथा इस व्रत को निर्जला ही रखा जाता है तथा इस समय पर जल अन्य दोनों ही ग्रहण नहीं करने चाहिए व्रत पारण के समय ही जल्द अन्य इत्यादि ग्रहण करना चाहिए.
जीवित्पुत्रिका व्रत का समय:-
जीवित्पुत्रिका व्रत अश्वनी मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है जो इस बार 28 सितंबर 2021 सायंकाल 6:16 पर आरंभ होगा तथा 29 सितंबर 2021 के रात्रि 8:29 तक रहेगा परंतु उदया तिथि के अनुसार 28 सितंबर 2021 को यह व्रत रखा जाएगा तथा इसका पारण 30 सितंबर 2021 को किया जाएगा.
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथाएं:-
गन्धर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे. युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे. एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है. वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा. इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है
व्रत की सामग्री:-
सूर्य नारायण की मूर्तियां प्रतिमा, धूप, दीप, फल, फूल, सुगंधित अगरबत्ती/ धूप इत्यादि.
पूजा विधि:-
इस समय आप सर्वप्रथम सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि इत्यादि नित्य कर्म करने के तत्पश्चात आप अपने घर के मंदिर की साफ सफाई करें तथा घर के मंदिर में सूर्य नारायण की प्रतिमा या उनकी मूर्ति को स्थापित करें तथा उनके समक्ष धूपिया अगरबत्ती जलाएं तथा फल फूल इत्यादि समर्पित करें तत्पश्चात सूर्यनारायण को भोग लगाएं तथा बहन या माताएं सप्तमी के दिन जल ग्रहण तथा भोजन ग्रहण करने के पश्चात अष्टमी के दिन निर्जला व्रत रखती हैं तथा नवमी के दिन अपना व्रत पारण करती हैं.
जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया की आरती:-
ओम जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन तिमिर निकंदन, भक्त हृदय चन्दन॥ ओम जय कश्यप…
सप्त अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस मलहारी॥ ओम जय कश्यप…
सुर मुनि भूसुर वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥ ओम जय कश्यप…
सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व विलोचन मोचन, भव-बंधन भारी॥ ओम जय कश्यप…
कमल समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत सहज हरत अति, मनसिज संतापा॥ ओम जय कश्यप…
नेत्र व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥ ओम जय कश्यप…
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥ ओम जय कश्यप…
मंत्र:-
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।।
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इसी जानकारी के साथ में आचार्य दयानन्द आज के अपने इस विषय को अभी विराम देता हूं.तथा कामना करता हूं .की आप सब लोगो को मेरी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। जय श्री कृष्णा दोस्तो…
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