ऊँ नमः शिवाय।
राधे राधे दोस्तो मैं आचार्य दयानन्द आप सभी लोगो का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत करता हूं.ईश्वर से कामना करता हूं आप सब लोग खुश होंगे सुखी होंगे संपन्न होंगे…..
दोस्तों आज मैं आपको अपने इस ब्लॉग में हनुमान जयंती के विषय में बताने जा रहा हूं.
हनुमान जयंती का महत्व:-
हनुमान जी को महाकाल शिव का 11वां रुद्रावतार माना गया है। उन्होंने अपना जीवन केवल अपने भगवान राम और माता सीता की सेवा के लिए समर्पित किया है। हिंदू मान्यता के अनुसार हनुमान जयंती के दिन हनुमान जी की पूजा-अर्चना करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। इनकी भक्ति करने से मनुष्य को शक्ति और समर्पण प्राप्त होता है।तथा इस दिन जो भक्त सच्चे भाव से हनुमान जी की पूजा करते हैं, उन्हें मनवाछिंत फल मिलता है.
हनुमान जयंती पर पूजा का समय:-
हनमान जयंती चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा को यानी 16 अप्रैल 2022 को दोपहर 2.25 बजे से प्रारंभ होगी और 17 अप्रैल 2022 को दोपहर 12.24 बजे खत्म होगी.हनुमान जयंती के दिन सुबह 5.55 से 8.40 बजे तक रवि योग बन रहा है. इस योग में हनुमान जी की पूजा करने से कई गुना फल मिलता है.
हनुमान जयंती के लिए पूजन सामग्री:-
हनुमान जी की प्रतिमा या मूर्ति, फल, फूल, लाल या पीले वस्त्र, बेसन के लड्डू,लाल सिंदूर,चमेली का तेल,सुंदरकांड के पाठ के लिए किताब इत्यादि..
हनुमान जयंती पर पूजन विधि:-
इस दिन आप सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठने के तत्पश्चात स्नान आदि नित्य कर्म कर ले तथा लाल या पीले वस्त्र भी धारण कर ले इसके बाद घर के मंदिर की साफ सफाई करें तथा हनुमान जी की मूर्ति या प्रतिमा को स्थापित कर दें तथा गंगाजल से छिड़काव करें तत्पश्चात भगवान हनुमान की विधिवत तरीके से पूजा करें।तथा फल फूल तथा बेसन के लड्डू हनुमान जी को चढ़ाएं तत्पश्चात भगवान हनुमान जी को चमेली का तेल में सिंदूर मिलाकर लेपन की तरह लगा दें। इससे भगवान जल्द प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही हनुमान चालीसा, सुंदर कांड, रामायण के साथ-साथ बजरंग बाण का पाठ करें। अंत में विधिवत तरीके से स्तुति के साथ आरती कर लें।
हनुमान जयंती के लिए कथा:-
पौराणिक कथानुसार, एक बार महान ऋषि अंगिरा भगवान इंद्र के देवलोक पहुंचे। वहां पर इंद्र ने पुंजिकस्थला नाम की अप्सरा द्वारा नृत्य प्रदर्शन की व्यवस्था की, लेकिन ऋषि को अप्सरा के नृत्य में कोई दिलचस्पी नहीं थी इसलिए वह गहन ध्यान में चले गए। अंत में जब उनके अप्सरा के नृत्य के बारे में पूछा गया थो उन्होंने ईमानदारी से कहा कि उन्हें नृत्य देखने में कोई दिलचस्पी नहीं है। यह सुनकर पुंजिकस्थला ऋषि पर क्रोधित हो गई बदले में ऋषि अंगिरा ने नर्तकी को श्राप देते हुए कहा कि वह एक बंदरिया के रूप में धरती पर जन्म लेगी। पुंजिकस्थला ने ऋषि से क्षमा याचना की लेकिन ऋषि ने अपना श्राप वापस नहीं लिया। नर्तकी एक अन्य ऋषि के पास गई और ऋषि ने अप्सरा को आशीर्वाद दिया कि सतयुग में भगवान विष्णु का एक अवतार प्रकट होगा। इस तरह पुंजिकस्थला ने सतयुग में वानर राज कुंजर की बेटी अंजना के रूप में जन्म लिया और उनका विवाह कपिराज केसरी से हुआ, जो एक वानर राजा थे इसके बाद दोनों के एक पुत्र हुआ जिसे शक्तिशाली हनुमान कहा गया है। भगवान शिव के 11वें अवतार माने जाने वाले हनुमान जी के जन्मदिवस को हनुमान जंयती के रूप में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह पर्व हिंदुओं का एक प्रमुख पर्व है यह चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। हनुमान जी की माता का नाम अंजना और पिता का नाम केसरी है।बजरंगबली के जन्म की एक रोचक कथा है। ज्योतिषियों की गणना के अनुसार बजरंगबली का जन्म 58 हजार 112 वर्ष पूर्व चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र और मेष लग्न के योग में सुबह 6 बजे हुआ था। कहा जाता है कि भारत के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गांव में एक गुफा में हुआ था। जब महावीर का जन्म हुआ तो उनका शरीर वज्र के समान था। हनुमान जी के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथानुसार सतयुग में राजा दशरथ ने संतान प्राप्ति के लिए गुरु वशिष्ठ के मार्गदर्शन में पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया। जिसे ऋंगी ऋषि ने संपन्न किया। यज्ञ संपन्न होते ही यज्ञ कुंड से अग्निदेव स्वयं खीर का पात्र लेकर प्रकट हुए और तीनों रानियों को बांट दिया। उसी वक्त रानी कैकेयी के हाथों से एक चील ने खीर छीन ली और मुख में भरकर उड़ गई। चील जब उड़ी तो देवी अंजनी के आश्रम से होकर गुजरी और उस वक्त अंजनी ऊपर देख रही थी। अंजनी के मुख मे खीर का आंशिक भाग गिर गया और अनायास वह खीर को निगल गईं। जिसकी वजह से वह गर्भवती हुईं और उन्होंने चैत्र मास की पुण्य तिथि पूर्णिमा को बजरंगबली को जन्म दिया। अजरअमर बजरंगबली भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त हुए और सदैव ब्रह्मचारी बने रहे।
हनुमान जयंती के लिए मंत्र तथा उपाय:-
हनुमान स्तुति:-
हनुमानअंजनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिंगाक्षोअमितविक्रम:।।
उदधिक्रमणश्चेव सीताशोकविनाशन:।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्।
राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन।।
हनुमान चालीसा:-
दोहा :-
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई :-
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
दोहा:-
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
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इसी जानकारी के साथ में आचार्य दयानन्द आज के अपने इस विषय को अभी विराम देता हूं.तथा कामना करता हूं .की आप सब लोगो को मेरी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। जय श्री कृष्णा दोस्तो…
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